गूँगे रांगेय राघव goonge 11 class hindi Chapter 4 Class 11 hindi Antra bhag 1 Summary
0Eklavya Study Pointअगस्त 13, 2024
गूँगे का परिचय
गूँगे को देखकर सभी लोगों में उसके बारे में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
गूँगे ने अपने कानों पर हाथ रखकर इशारा किया कि वह जन्म से वज्र बहरा (जिसे पूर्ण रूप से सुनाई न देता हो) होने के कारण गूँगा है।
लोगों ने उसके माता-पिता के बारे में पूछा, तो उसने मुँह के आगे इशारा करके बताया कि
जब वह छोटा ही था, तब माँ, जो घूँघट काढ़ती थी, भाग गई और बड़ी-बड़ी मूँछों वाला बाप मर गया,
इसलिए उसे बुआ-फूफा ने पाला था, जो उसे मारा करते थे।
गूँगे के प्रति लोगों की संवेदना
गूँगे की पीड़ादायक व्यथा जानकर सभी लोगों का हृदय करुणा से भर गया।
वह बोलने का भरसक प्रयास करता है, परंतु नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का ढेर।
अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदि मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो।
किसी ने बचपन में गला साफ़ करने की कोशिश में काकल काट दिया और वह ऐसे बोलता है जैसे घायल पशु कराह उठता है।
चमेली ने पहली बार अनुभव किया कि यदि गले में काकल तनिक ठीक नहीं हो, तो मनुष्य क्या से क्या हो जाता है।
कैसी यातना है कि वह अपने हृदय को उगल देना चाहता है, किंतु उगल नहीं पाता।
गूँगे का स्वाभिमानी व स्वावलंबी होना
गूँगे की दुःखभरी कहानी सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। सुशीला ने पूछा कि तू खाता क्या है?
किस तरह अपना जीवन निर्वाह करता है?
वह इशारों में बताता है कि हलवाई के यहाँ रातभर लड्डू बनाए हैं, कड़ाही माँजी है, नौकरी की है, कपड़े धोए हैं।
सीने पर हाथ मारकर इशारा किया-'हाथ फैलाकर कभी नहीं माँगा, भीख नहीं लेता', भुजाओं पर हाथ रखकर इशारा किया, मेहनत का खाता हूँ' और पेट बजाकर दिखाया ‘
इसके लिए, इसके लिए.......' गूँगा यह भी बता देता है कि आप यदि इन इशारों को करेंगी, तो मैं घर के सारे काम कर सकता हूँ।
चमेली द्वारा गूंगे को नौकर रखना
गूँगा अपने गज़ब के इशारों से अपने भाव विचारों को व्यक्त करता है।
वह दूध ले आता है। कच्चा मँगाना हो तो थन काढ़ने का इशारा कीजिए, औंटा हुआ मँगवाना हो, तो हलवाई जैसे एक बर्तन से दूध दूसरे बर्तन में उठाकर डालता है, वैसी बात कहिए।
साग मँगवाना हो, तो गोल-गोल कीजिए या लंबी उँगली दिखाकर समझाइए।
चमेली उससे अत्यंत प्रभावित होती है और पूछती है- हमारे यहाँ रहेगा?
गूँगे ने हाथ से इशारा किया-क्या देगी?
चमेली ने उसे चार रुपये और खाना देने का प्रस्ताव दिया। गूँगा उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है।
गूँगे का घर से भाग जाना तथा चमेली का क्रोधित होना
गूँगा चमेली के घर रहने लगा।
•बच्चों के चिढ़ाने का भी वह बुरा नहीं मानता था, किंतु जगह-जगह नौकरी करके भाग जाने की उसकी आदत अभी नहीं गई थी।
एक दिन अचानक वह चुपके से घर से निकल पड़ा। जब चमेली ने उसे पुकारा गूँगे ! तब कोई उत्तर नहीं आया।
'भाग गया होगा', चमेली के पति ने उदासीन स्वर में कहा।
चमेली को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्यों भाग गया?
वह रसोईघर में जाकर मन-ही-मन उसे नाली का कीड़ा कहती है, 'एक छत उठाकर सिर पर रख दी' फिर भी मन नहीं भरा।
जब चमेली खाना पकाकर बच्चों समेत खुद भी भोजन कर लेती है, तब गूँगा लौट आता है और भूखा होने का इशारा करता है।
चमेली दो रोटियाँ उसकी ओर फेंक देती है और उसके खा लेने के बाद चिमटा लेकर उसकी खबर लेती है कि वह घर से भागकर कहाँ गया था।
गूँगा पीठ पर चिमटा पड़ने पर भी नहीं रोता है, क्योंकि उसे अपने अपराध का भान था।
यह देख चमेली की आँखें भर आती हैं और तब गूँगा भी रो पड़ता है।
इस घटना के बाद गूँगे के भागने और पुनः लौट आने का क्रम जारी रहा।
चमेली सोचती कि गूँगे ने घर से भागकर भीख माँगी होगी।
गूँगे की सहनशीलता व कृतज्ञता
एक दिन चमेली का बेटा बसंता उसे चपत जड़ देता है, परंतु गूँगा बसंता पर पलटवार नहीं करता और रो पड़ता है।
उसके रोने की कर्कश आवाज़ सुन चमेली वहाँ आती है।
बसंता के यह कहने पर कि गूँगा उसे पीटना चाहता था,
चमेली गूँगे पर गुस्साती है- क्यों रे? चमेली की भाव-भंगिमा समझ गूँगा उसका हाथ पकड़ लेता है।
चमेली घृणा से हाथ छुड़ा लेती है और जाकर रसोई में जुट जाती है।
रोटी पकाती हुई वह सोचती है कि गूँगा बसंता से अधिक बलशाली है, फिर भी उसने उस पर हाथ नहीं उठाया,
पर मेरा हाथ पकड़कर शायद वह मुझे बताना चाहता था कि वह निर्दोष है
चमेली को यह सोच विस्मय होता है कि गूँगा शायद यह समझता है कि बसंता उसके मालिक का बेटा है, इसलिए वह उस पर हाथ नहीं उठा सकता।
इस तरह, गूँगा अपने आश्रयदाता के प्रति सहनशीलता व कृतज्ञता का भाव रखता था।
गूँगे को घर से बाहर निकालना
एक दिन घृणा से विक्षुब्ध होकर चमेली गूँगे से पूछती है कि क्या उसने चोरी की है?
इस पर गूँगा चुपचाप सिर झुका लेता है।
चमेली सोचती है शायद अपराध स्वीकार कराकर दंड दिए बिना ही गूँगे को सुधारा जा सकता है।
हाथ पकड़कर उसे घर से बाहर निकल जाने का इशारा करती है।
फिर आवेश में आकर कहती है, "रोज़-रोज़ भाग जाता है, पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है। कुत्ते की दुम क्या कभी सीधी होगी?
नहीं रखना है हमें, जा, तू इसी वक्त निकल जा।"
गूँगा समझ जाता है कि मालकिन नाराज़ होकर उसे घर से बाहर निकालना चाहती है, पर वह वहीं खड़ा रहता है।
•तब चमेली उसे हाथ पकड़कर दरवाज़े से बाहर कर देती है।
अत्याचार के प्रति गूंगे का विद्रोह
गूँगे के जाने के घंटेभर बाद ही शकुंतला और बसंता चिल्लाकर 'अम्मा-अम्मा' पुकारने लगते हैं।
गूँगा लहूलुहान घर के दरवाज़े पर सिर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था।
उसे सड़क पर लड़कों ने पीटा था, क्योंकि गूँगा होने के चलते उसे दबना स्वीकार न था।
उसका सिर फट गया था। चमेली चुपचाप यह सब देख रही थी।
वह सोचने लगती है कि आज ये गूँगे कितने रूपों में इस संसार में व्याप्त हैं, जो न्याय-अन्याय की परख करने के पश्चात् भी अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पाते।